छुटपन की बात कैशोर्य में उचटते
कैशोर्य का जोश पौढ़ में पिघलते
पौढ़ की आदत वार्धक्य में खीजते
हाँ हमने भी कुछ-कुछ देखा है
जो कुछ छूटता भी है
तो बस तुम्हें बाच लेता हूँ।
7 JUNE 2016
क्षितिज तक फैला
कोमल घास से लबरेज
एक वृहद मैदान।
जिसे, कभी मैंने,
चहल कदमी से पार किया था।
हाँ, एक अरसा बीत गया।
युग कहु तो भी
अतिश्योक्ति न होगी।
पुन: आज उसी मैदान के
एक छोर पर मैं था खड़ा।
वातावरण कहे, या
कहे परिवेश
कुछ अंतर न था;
शिवाय मेरे क़दमों के निशान
जो मेरे चहल कदमी से बने थे।
नदारद है।
ढूढने चला तो
बस एहसास था
हाँ हाँ यहीं कहीं
मैंने पांव अपने धरे थे।
कयास लगाते हुए हतासात्मक-रोमांच
से गुजरना अजीब जद्दोजहद
होता है, ये जान सका-
इस पीड़ा से गुजरते हुए।
तो क्या मैं
बिसरा दिया गया?
भुला दिया गया?
मिटा दिया गया?
6 JUNE 2016